जनसांख्यिकीय लाभांश के आर्थिक प्रभाव

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जनसांख्यिकीय लाभांश (Demographic Dividend) भारत के आर्थिक विकास की एक महत्वपूर्ण अवसर है। इसका अर्थ उस सम्भावित प्रबल आर्थिक विकास से है जो किसी जनसंख्या में काम करने वालों की संख्या तथा उनके ऊपर आश्रित लोगों की संख्या का अनुपात अधिक होने पर मिल सकता है। यह अर्थव्यवस्था में मानव संसाधन के सकारात्मक और सतत विकास को दर्शाता है।

वर्तमान में, भारत की आबादी एक प्रौझ विश्व में सबसे युवा आबादी में से एक है। यह जनसंख्या ढांचे में बढ़ती युवा और कार्यशील जनसंख्या (15 से 64 वर्ष आयु वर्ग) तथा घटते आश्रितता अनुपात के परिणामस्वरूप उत्पादन में बड़ी मात्रा के सृजन को प्रदर्शित करता है। इस स्थिति में जनसंख्या पिरामिड उल्टा बनता है, अर्थात् इसमें कम जनसंख्या आधार से ऊपर को बड़ी जनसंख्या की ओर बढ़ते हैं। मानव संसाधन के द्वारा प्राप्त लाभ को ही जनांकिकीय लाभ कहते हैं। जनांकिकीय लाभ आर्थिक विकास पर गहरा प्रभाव डालता है।

भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) ने अगले दशक में जनसांख्यिकीय लाभांश (Demographic Dividend) प्राप्त करने के लिए भारतीय अर्थव्यवस्था को 8-10 प्रतिशत प्रति वर्ष की दर से बढ़ने की जरूरत है। इसका मकसद भारत की विकासात्मक रणनीति को जीवीए के विकास में अपने युवा और उभरते श्रम बल के योगदान को अधिकतम करना है, ताकि इसके अनुकूल जनसांख्यिकी का लाभ उठाया जा सके और निम्न मध्यम आय बाधा को तोड़ने में मदद कर सके। आरबीआई के डिप्टी गवर्नर माइकल देबब्रत पात्रा ने अपने लेख “The Indian Economy: Opportunities and Challenges” में इस बात पर प्रकाश डाला कि जनसांख्यिकी विकास की बढ़ती प्रोफ़ाइल का पक्ष लेती है। वर्तमान समय में भारत में दुनिया की सबसे बड़ी आबादी और सबसे युवा लोग हैं। औसत आयु लगभग 28 वर्ष है; 2050 के दशक के मध्य तक बुढ़ापा शुरू नहीं होगा। इस प्रकार, भारत 3 दशकों से अधिक समय तक जनसांख्यिकीय डिविडेंड विंडो का आनंद उठाएगा, जो कि “कामकाजी उम्र की जनसंख्या दर और श्रम बल भागीदारी दर में वृद्धि दुनिया भर में उम्र बढ़ने की चुनौती का एक बड़ा विरोधाभास है।”

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