उ.प्र. गो-हत्या निवारण (संशोधन) अध्यादेश, 2020 के प्रारूप को स्वीकृति

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यह निर्णय राज्य विधान मण्डल का सत्र न होने तथा शीघ्र कार्यवाही किये जाने के दृष्टिगत संशोधन के लिए अध्यादेश प्रख्यापित कराये जाने की आवश्यकता के मद्ेदनजर लिया गया है। उत्तर प्रदेश गो-वध निवारण (संशोधन) अध्यादेश, 2020 का उद्देश्य उत्तर प्रदेश गो-वध निवारण अधिनियम, 1955 को और अधिक संगठित एवं प्रभावी बनाना है एवं गोवंशीय पशुओं की रक्षा तथा गोकशी की घटनाओं से संबंधित अपराधों को पूर्णतः रोकना है।

ज्ञातव्य है कि उत्तर प्रदेश गोवध निवारण अधिनियम, 1955 दिनांक 06 जनवरी, 1956 को प्रदेश में लागू हुआ था। वर्ष 1956 में इसकी नियमावली बनी। वर्ष 1958, 1961, 1979 एवं 2002 में अधिनियम में संशोधन किया गया तथा नियमावली का वर्ष 1964 व 1979 में संशोधन हुआ। परन्तु अधिनियम में कुछ ऐसी शिथिलताएं बनी रहीं, जिसके कारण यह अधिनियम जन भावना की अपेक्षानुसार प्रभावी ढंग से कार्यान्वित न हो सका और प्रदेश के भिन्न-भिन्न भागों में अवैध गोवध एवं गोवंशीय पशुओं के अनियमित परिवहन की शिकायतें प्राप्त होती रही थीं।

उत्तर प्रदेश एक कृषि प्रधान प्रदेश है तथा इसके आर्थिक एवं सामाजिक ढांचे में गोवंशीय पशु कृषकों के मेरूदण्ड के समान है। अतः प्रदेश से अच्छी गाय एवं गोवंशीय पशुओं का अन्य प्रदेशों में पलायन रोकने, श्वेत क्रांति का स्वप्न साकार करने एवं कृषि कार्यों को बढ़ावा देने के लिए नगरों के साथ-साथ ग्रामीण क्षेत्रों में खुशहाली लाने के लिए यह अत्यन्त आवश्यक हो गया है कि गाय एवं गोवंशीय पशुओं का संरक्षण एवं परिरक्षण किया जाए।

उत्तर प्रदेश गोवध निवारण अधिनियम, 1955 (यथासंशोधित) की धारा-8 में गोकशी की घटनाओं हेतु 07 वर्ष की अधिकतम सजा का प्राविधान है। उक्त घटनाओं में सम्मिलित लोगों की जमानत हो जाने के मामले बढ़ रहे हैं। गोकशी की घटनाओं से सम्बन्धित अभियुक्तों द्वारा मा0 न्यायालय से जमानत प्राप्त होने के उपरान्त पुनः ऐसी घटनाओं में संलिप्त होने के प्रकरण परिलक्षित हो रहे हैं।

इन सभी कारणों से जन भावना की अपेक्षा का आदर करते हुए यह आवश्यक हो गया कि गोवध निवारण अधिनियम को और अधिक सुदृढ़, संगठित एवं प्रभावी बनाया जाए। इन्हीं बिन्दुओं पर विचार करते हुए वर्तमान गोवध निवारण अधिनियम, 1955 में संशोधन किए जाने का निर्णय लिया गया है।

मूल अधिनियम की धारा 5 (क) में उपधारा (5) के पश्चात इन उपबंधों को अध्यादेश में सम्मिलित किया गया है। जहां उक्त वाहन इस अधिनियम के अधीन सक्षम प्राधिकारी या प्राधिकृत प्रयोगशाला द्वारा गोमांस से सम्बन्धित होना पुष्टिकृत कर दिया गया हो, वहां तब तक चालक, ऑपरेटर तथा परिवहन से सम्बन्धित स्वामी को इस अधिनियम के अधीन अपराध से आरोपित किया जाएगा, जब तक यह सिद्ध नहीं हो जाता कि परिवहन के साधन की समस्त सावधानियों के होते हुए और उसकी जानकारी के बिना अपराध में प्रयुक्त परिवहन के साधन का प्रयोग अपराध करने के निमित्त किसी अन्य व्यक्ति द्वारा किया गया है।

प्रश्न- उत्तर प्रदेश मंत्रिपरिषद ने उ.प्र. गो-वध निवारण (संशोधन) अध्यादेश, 2020 के प्रारूप को स्वीकृति प्रदान की। इसके तहत गोकशी की घटनाओं हेतु कितने वर्ष की अधिकतम सजा का प्रावधान है?
(a) 10 वर्ष
(b) 08 वर्ष
(c) 02 वर्ष
(d) 07 वर्ष
उत्तर-(a)

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